۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
समाचार कोड: 388139
27 नवंबर 2023 - 21:38
شهادت

हौज़ा/ऐ अली अ.स. मैं फ़ातिमा स.अ. मोहम्मद स.अ. की बेटी हूं अल्लाह ने मेरी शादी आपसे करवाई ताकि दुनिया और आख़ेरत में आपके साथ रह सकूं, आप दूसरे सभी लोगों से मेरे लिए बेहतर हैं, मुझे रात में ग़ुस्ल दीजिएगा रात ही में कफ़न पहनाइएगा और रात ही में नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर दफ़्न कीजिएगा और किसी को मेरे मरने की ख़बर मत दीजिएगा, मैं आप को अल्लाह के हवाले कर रही हूं और क़यामत तक अपने बच्चों पर सलाम और दुरूद भेजती रहूंगी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अहले बैत अ.स. से नक़्ल होने वाली हदीसों और अहले सुन्नत की किताबों में बयान होने वाली रिवायतों से पता चलता है कि हज़रत ज़हरा स.अ. ने अलग अलग विषय के बारे में वसीयत फ़रमाई है।

जायदाद के बारे में वसीयत

हज़रत ज़हरा स.अ. ने पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद उन सभी जायदाद में जो पैग़म्बर स.अ. से आप को मिली थी उसके बारे में वसीयत कर दी थी, रिवायत में है कि पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद उनके चचा इब्ने अब्बास, हज़रत ज़हरा स.अ. के पास गए और पैग़म्बर स.अ. की जायदाद में से कुछ रक़म मांगी ताकि उसको मेहमानों और कुछ दूसरे कामों पर ख़र्च कर सकें, आपने जवाब दिया कि मैंने सारी जायदाद अल्लाह की राह में वक़्फ़ कर दी है।

यहां पर जायदाद के बारे में आपकी वसीयत की दो मिसालें पेश कर रहे हैं।

हीताने सबआ (सात बाग़)

सात वह बाग़ जिनके चारों ओर दीवारें उठी हुई थीं रिवायत के मुताबिक़ हज़रत ज़हरा स.अ. ने उन्हें चैरिटी के लिए वक़्फ़ कर दिया था, इमाम बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि मेरी मां फ़ातिमा स.अ. ने यह वसीयत की थी और मेरे वालिद इमाम अली अ.स. ने इसे लिखा था। (काफ़ी, शैख़ कुलैनी, जिल्द 7, पेज 48)

उम्मुल अयाल (खजूर का बाग़)

आपके द्वारा वक़्फ़ की जाने वाली जायदाद में से एक खजूर का बाग़ भी था जिसमें 20 हज़ार पेड़ थे और उसमें नींबू संतरे और भी कई तरह के फ़लों के पेड़ थे और उसमें खेती भी होती थी, हज़रत ज़हरा स.अ. ने इस पूरे बाग़ को फ़क़ीरों और सादात ग़रीबों के लिए वक़्फ़ कर दिया था, शिया सुन्नी दोनों की किताबों में मिलता है कि उम्मुल अयाल हज़रत ज़हरा स.अ. द्वारा दिया जाने वाला सदक़ा था जिसके बारे में आपने विशेष वसीयत की थी, क्योंकि यह बाग़ जिस इलाक़े में वह बहुत अहम जगह थी, आज इस जगह पर कई पानी के चश्मे हैं और यह जगह काफ़ी हरी भरी है। (मोजमो मआलिमिल हिजाज़, जिल्द 6, पेज 194)

दीनी और सियासी वसीयत

आपने कई वसीयतें फरमाईं, कुछ ज़बानी और कुछ इमाम अली अ.स. द्वारा लिखवा कर, यह वसीयतें आपने शहादत से कुछ समय पहले ही इमाम अली अ.स. से की थीं।

मुझे याद रखिएगा

आपने अपनी शहादत से कुछ समय पहले इमाम अली अ.स. से कहा, ऐ अबुल हसन अ.स. मैं कुछ ही देर में इस दुनिया से चली जाऊंगी मेरी ख़ुदा हाफ़िज़ी का समय आ पहुंचा है, मेरी बात को ध्यान से सुनिएगा क्योंकि इसके बाद फिर कभी फ़ातिमा स.अ. की आवाज़ सुनने को नहीं मिलेगी, ऐ अबुल हसन अ.स. मेरी वसीयत है कि मुझे कभी भुलाईएगा नहीं मेरे चले जाने के बाद मुझे याद रखिएगा। (ज़ोहरतुर् रियाज़ कौकबुद् दुर्री, जिल्द 1, पेज 253)

मेरे सिरहाने क़ुर्आन पढ़िएगा

ऐ अबुल हसन अ.स. मेरे इस दुनिया से जाने के बाद आप ही मुझे ग़ुस्ल दीजिएगा और आप ही कफ़न पहनाईएगा आप ही मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़िएग और क़ब्र में भी आप ही उतरिएगा और आप ही मुझे दफ़्न कीजिएगा और फिर मेरे सिरहाने मेरे चेहरे के सामने बैठ कर देर तक क़ुर्आन पढ़िएगा और मेरे लिए दुआ कीजिएगा, क्योंकि मरने के बाद मरने वालों को ज़िंदा लोगों के साथ की बहुत ज़रूरत होती है, ऐ अबुल हसन अ.स. मैं आपको अल्लाह को सौंप के जा रही हूं और मेरे बच्चों का ख़्याल रखिएगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 79, पेज 27)

सक़ीफ़ा में उधम मचाने वालों को मेरे मरने की ख़बर मत दीजिएगा

आपने अपने शौहर का हक़ उनसे छीनने वालों से नाराज़गी जताते हुए वसीयत फ़रमाई कि ऐ अबुल हसन अ.स. मेरी वसीयत है कि मुझे आप ही ग़ुस्ल दीजिएगा और आप ही कफ़न पहनाइएगा और मेरे इस दुनिया से जाने के बाद मुझे रात में दफ़्न कीजिएगा और किसी को भी मेरे मरने की ख़बर मत दीजिएगा, अबू बक्र और उमर को भी मत बताइएगा और आपको मैं पैग़म्बर स.अ. के हक़ की क़सम देती हूं कि अबू बक्र और उमर को मेरी नमाज़े जनाज़ा मत पढ़ने दीजिएगा। (कश्फ़ुल ग़ुम्मह, जिल्द 2, पेज 68)

इमाम सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं कि हज़रत ज़हरा स.अ. ने अंतिम समय में इमाम अली अ.स. से फ़रमाया मेरे इस दुनिया से चले जाने की ख़बर मर्दों में हसन अ.स. हुसैन अ.स. अब्बास, सलमान, अम्मार, मेक़दाद, अबू ज़र और हुज़ैफ़ा के अलावा और औरतों में उम्मे सलमा, उम्मे ऐमन और फ़िज़्ज़ा के अलावा किसी को भी मत दीजिएगा, और मुझे रात ही में दफ़्न कीजिएगा और मेरी क़ब्र के बारे में किसी को भी मत बताइएगा। (दलाएलुल इमामत, तबरी, जिल्द 78, पेज 310, बिहारुल अनवार, जिल्द 78, पेज 310)

हज़रत ज़हरा स.अ. ने असमा बिन्ते उमैस से फ़रमाया, ऐ असमा मैं जब इस दुनिया से गुज़र जाऊं तो तुम और अबुल हसन अ.स. मुझे ग़ुस्ल देना और मेरे जनाज़े में किसी को भी मत आने देना। (ज़ख़ाएरुल उक़बा, पेज 53)

मेरे और पैग़म्बर स.अ. के दुश्मनों को ख़बर मत दीजिएगा

इसी तरह आपने इमाम अली अ.स. से कहा, ऐ अबुल हसन अ.स. मेरी आपसे वसीयत है कि जिनहोंने मेरे ऊपर ज़ुल्म किया है और मेरा हक़ छीना है उनको मेरे जनाज़े में मत आने दीजिएगा, क्योंकि वह मेरे और पैग़म्बर स.अ. दोनों के दुश्मन हैं, और उनको और उनकी पैरवी करने वालों में से किसी को मेरी नमाज़े जनाज़ा मत पढ़ने दीजिएगा, मुझे रात में जब सारा शहर सो रहा हो तब दफ़्न कीजिएगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 43, पेज 209, जिल्द 78, पेज 253, जिल्ज 28, पेज 394)

आपका लिखा हुआ वसीयतनामा

हज़रत ज़हरा स.अ. ने इमाम अली अ.स. से वसीयत करने के बाद आंखों को बंद कर लिया और शहादतैन ज़बान पर जारी किया और हमेशा हमेशा के लिए अपने वालिद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ. से जा मिलीं, इमाम अली अ.स. की निगाह हज़रत ज़हरा स.अ. के पहलू में रखी हुई किसी चीज़ पर पड़ी आपने देखा तो उसमें आपकी कुछ आपके हाथों से लिखी हुई वसीयतें इस तरह थीं....

आपने बिस्मिल्लाह के बाद लिखा था कि यह पैग़म्बर स.अ. की बेटी की वसीयत है मैं अल्लाह की वहदानियत की गवाही देती हूं कि उस अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और मोहम्मद स.अ. उसके बंदे और उसकी ओर से भेजे हुए नबी हैं,

जन्नत और जहन्नम हक़ हैं, क़यामत ज़रूर आएगी इसमें कोई शक नहीं है और अल्लाह दोबारा सभी मुर्दों को ज़िंदा कर के महशर में पेश करेगा, 

ऐ अली अ.स. मैं फ़ातिमा स.अ. मोहम्मद स.अ. की बेटी हूं अल्लाह ने मेरी शादी आपसे करवाई ताकि दुनिया और आख़ेरत में आपके साथ रह सकूं, आप दूसरे सभी लोगों से मेरे लिए बेहतर हैं, मुझे रात में ग़ुस्ल दीजिएगा रात ही में कफ़न पहनाइएगा और रात ही में नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर दफ़्न कीजिएगा और किसी को मेरे मरने की ख़बर मत दीजिएगा, मैं आप को अल्लाह के हवाले कर रही हूं और क़यामत तक अपने बच्चों पर सलाम और दुरूद भेजती रहूंगी। (अवालिम, जिल्द 11, पेज 514, बिहारुल अनवार, जिल्द 43, पेज 214, जिल्द 100, पेज 185, जिल्द 78, पेज 390)
 

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